प्लेटफ़ॉर्म नंबर नौ का अजनबी – एक भावुक कहानी जो दिल छू लेगी
🚉 प्लेटफ़ॉर्म नंबर नौ का अजनबी – एक भावुक कहानी जो दिल छू लेगी
❄️ धुंध भरी सुबह और प्लेटफ़ॉर्म नंबर 9
दिल्ली का रेलवे स्टेशन। सुबह के 9:05 बजे। सर्दियों की धुंध के बीच आन्या नाम की एक युवा लड़की अपने हाथों में चमड़े की पुरानी डायरी थामे प्लेटफ़ॉर्म नंबर 9 पर खड़ी थी।
पर ये यात्रा सामान्य नहीं थी।
ये सफर उस अध्याय को खत्म करने का था जो उसकी ज़िंदगी में सालों से अधूरा रह गया था।
उसके पिता हाल ही में गुज़र चुके थे – जो एक स्टेशन मास्टर थे। बचपन में वह उनके साथ स्टेशन पर आया करती थी, जहां हर ट्रेन की सीटी और प्लेटफॉर्म की हलचल उसे जादू जैसी लगती थी। आज वह पहली बार उनके बिना लौटी थी… बस एक आख़िरी बार उन्हें महसूस करने।
तभी एक अनजान आवाज़ उसके कानों में पड़ी:
“क्या तुम भी 9:15 की शताब्दी का इंतज़ार कर रही हो?”
उसने देखा—एक बूढ़े से सज्जन, जिनकी आंखों में सालों की कहानियां और चेहरे पर शांति थी।
“हाँ,” आन्या ने धीमे से कहा।
उन्होंने कहा, “तुम आज इस प्लेटफ़ॉर्म की नहीं लग रही… लगता है कोई ग़म यहाँ लेकर आई हो।”
उनकी बात ने उसे चौंका दिया।
"क्या मतलब?" — उसने पूछा।
"दर्द की अपनी ट्रेनों की टाइमिंग होती है… और तुम शायद किसी बीते वक़्त में फँसी हो," उन्होंने कहा।
आन्या चुप रही, लेकिन कुछ था उनमें… जो सुकून दे रहा था।
📖 अजनबी की कहानी
"एक लड़का था," उन्होंने कहना शुरू किया, "जो रोज़ शाम को पटरियों के पास बैठकर ट्रेनें गिनता था। उसके पिता स्टेशन पर काम करते थे। एक दिन एक दुर्घटना हुई। ट्रेन पटरी से उतर गई। उसके पिता उसमें मारे गए।
लड़के ने ट्रेनें गिनना छोड़ दिया… और पछतावे गिनने शुरू कर दिए।
साल बीते। वह बड़ा हुआ। एक लेखक बना। पर वह दर्द नहीं गया। फिर एक सर्द सुबह… वो प्लेटफ़ॉर्म पर लौटा। अपने पिता की डायरी लेकर।
उसमें एक नोट था:
‘हर ट्रेन कुछ ले जाती है। लेकिन कभी-कभी… वो कुछ लौटा भी देती है।’
उस दिन उसने पहली बार मुस्कुराया… क्योंकि उसे समझ आया—उसके पिता कभी गए ही नहीं थे। वो **हर सीटी, हर रेल, हर पन्ने में जिंदा थे।"
आन्या की आंखों में आँसू थे।
"वो लड़का… आप थे?" – उसने पूछा।
बूढ़े व्यक्ति ने जवाब नहीं दिया। बस अपनी थैली से एक डायरी निकाली। वो ठीक वैसी ही थी जैसी आन्या के पास थी।
उसने पन्ना खोला और उसे दिखाया:
“12 मार्च 1996 – आज एक स्टेशन मास्टर से मिला, जिन्होंने कहा: ‘ट्रेनें रुकती नहीं, रुकती हैं बस कुछ पल… सफर जारी रहना चाहिए।’”
"ये… ये तो मेरे पापा की हैंडराइटिंग है!" – आन्या कांपते हुए बोली।
"हाँ," उन्होंने मुस्कुराकर कहा।
"तुम्हारे पिता ने एक खोए हुए लड़के को ज़िंदगी की पटरी पर लौटाया था। आज, सालों बाद, मैं उन्हें शुक्रिया कहने आया हूँ… तुम्हारे ज़रिए।"
🛤️ विदाई, जो नई शुरुआत बन गई
घोषणा हुई – 9:15 शताब्दी एक्सप्रेस आ रही थी। लोग हड़बड़ी में थे।
पर आन्या बस एक क्षण में जी रही थी।
"मैं अलविदा कहने आई थी…" – उसने कहा।
"तो अलविदा मत कहो। 'शुक्रिया' कहो। और उनके बारे में लिखो। कोई और भी पढ़ेगा… और शायद जी पाएगा।" – उन्होंने जवाब दिया।
आन्या मुस्कुरा दी। उसकी आंखों से आँसू बह रहे थे, पर दिल अब थोड़ा हल्का था।
वो चले गए… धुंध में खोते हुए… जैसे कोई ट्रेन गुजरती है।
✨ एक साल बाद…
आन्या ने अपनी पहली किताब प्रकाशित की:
“प्लेटफ़ॉर्म नंबर नौ का अजनबी”।
और समर्पण में लिखा:
“मेरे पापा को…
जो ट्रेनों में जिए।
उस अजनबी को…
जिसने मुझे फिर से जीना सिखाया।”
🚉❤️
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