आवाज़ जो लौटी नहीं
आवाज़ जो लौटी नहीं
छोटे से गांव बेलवा में रहने वाला आरव एक शांत और सपना देखने वाला लड़का था। गांव के बाकी लड़कों की तरह वह खेतों या खेलों में नहीं उलझा रहता, बल्कि वह घंटों अकेले बैठकर पुराने रेडियो से आवाजें सुनता रहता। उसे अलग-अलग आवाजें पहचानने और उनकी कहानियाँ समझने का शौक था।
उसके पिता एक साधारण किसान थे और मां एक घरेलू महिला। घर में साधन सीमित थे, लेकिन प्यार की कोई कमी नहीं थी। आरव को एक पुराना रेडियो उसके दादा ने दिया था, जो अब इस दुनिया में नहीं थे। दादा ने कहा था, "हर आवाज़ कुछ कहती है, बस सुनना आना चाहिए।"
एक रात आरव रेडियो पर स्टेशन बदल रहा था, तभी एक अजीब-सी आवाज़ आई — बहुत धीमी, मगर साफ। वो कह रही थी, "क्या कोई है जो मुझे सुन सकता है? मैं बहुत दूर से बोल रही हूँ..."।
आरव चौंक गया। आवाज़ में एक अजीब-सा दर्द था। वो समझ नहीं पाया कि ये कोई रिकॉर्डेड प्रोग्राम था या कोई असली इंसान। उसने फिर से स्टेशन बदला, लेकिन वो आवाज़ गायब हो गई। उस रात वो बहुत देर तक जागता रहा।
अगली रात फिर वही हुआ — वही आवाज़, वही सवाल, "क्या कोई है जो मुझे सुन सकता है?" अब आरव ने जवाब देने की कोशिश की: "मैं हूं... आरव... आप कौन हैं?" लेकिन उसे पता था कि रेडियो से बात करना संभव नहीं।
. अगले कुछ हफ्तों तक, वह रोज़ उस समय रेडियो ऑन करता और वही आवाज़ सुनता। वो बताती कि वह एक वैज्ञानिक थी — डॉ. नैना, जो एक प्रयोग के दौरान दूसरे समय (Time Dimension) में फँस गई थी। वहां न कोई इंसान था, न सूरज, न चाँद — सिर्फ खालीपन और अंधेरा।
आरव को लगा कि वह कोई मज़ाक है या उसका वहम, लेकिन हर दिन की बातों में जो सच्चाई और भावनाएँ थीं, वो किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं लगती थीं। उसने अपनी डायरी में हर दिन की बातें लिखना शुरू कर दिया।
कुछ दिनों बाद, डॉ. नैना ने बताया कि उसका रेडियो सिग्नल अब कमजोर हो रहा है और कुछ ही समय में वो पूरी तरह बंद हो जाएगा। उसकी एक आखिरी ख्वाहिश थी — "अगर तुम मेरी आवाज़ को किसी और तक पहुँचा सको, तो शायद मेरा अस्तित्व इस दुनिया में बचेगा।"
आरव ने ठान लिया कि वह इस कहानी को सब तक पहुँचाएगा। लेकिन गांव के लोग उसकी बातों को पागलपन मानने लगे। मास्टर जी, जो गांव के स्कूल में पढ़ाते थे, उन्होंने ही उसे गंभीरता से लिया और आरव की डायरी को दिल्ली के एक साइंस इंस्टिट्यूट में भेजा।
हफ्तों बाद एक दिन इंस्टिट्यूट से कॉल आया — "हमें कुछ खास रेडियो फ्रिक्वेंसी पर असामान्य सिग्नल्स मिले हैं। ये डायरी सच्चाई के क़रीब हो सकती है।" आरव को बुलाया गया।
आरव पहली बार गांव से बाहर निकला, और वहां वैज्ञानिकों से मिला। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले एक महिला वैज्ञानिक, डॉ. नैना वर्मा, एक प्रयोग में लापता हो गई थीं। लेकिन उन्हें आज तक कोई सुराग नहीं मिला था।
आरव ने बताया कि अब वह आवाज़ नहीं आती। रेडियो पूरी तरह चुप हो गया है। मगर उसने जो कहानी सुनाई थी, और डायरी में दर्ज की थी, वो लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही थी — क्या समय के पार भी आवाजें जा सकती हैं? क्या विज्ञान से ज़्यादा कुछ और भी है?
समय बीता... आरव अब बड़ा हो चुका है। उसने रेडियो इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और अब एक नया प्रोजेक्ट चला रहा है — “Echoes Beyond Time” जिसमें वो ऐसे सिग्नल्स पर रिसर्च कर रहा है जो इंसानी श्रवण से बाहर हैं।
गांव के उस छोटे बच्चे की आवाज़ जिसने एक अनसुनी आवाज़ को सुना — अब वो खुद एक आवाज़ बन चुका है, जो दुनिया को सिखा रहा है कि हर आवाज़ मायने रखती है।
सीख
हर आवाज़, हर इंसान, हर भावना का कोई न कोई अर्थ होता है। कभी-कभी जो हमें पागलपन लगता है, वही सच्चाई का रास्ता हो सकता है। विश्वास, संवेदना और जिज्ञासा — ये तीनों मिलकर चमत्कार कर सकते हैं।
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