अर्जुन और इंटरनेट वाला सवाल
अर्जुन और इंटरनेट वाला सवाल
शांतिपुर नाम के एक छोटे से कस्बे में अर्जुन नाम का एक दसवीं कक्षा का छात्र रहता था। अर्जुन दिखने में साधारण था, लेकिन उसकी सोच और जिज्ञासा उसे सबसे अलग बनाती थी। वह हर चीज़ में “क्यों” और “कैसे” ढूंढता रहता था। बादल कैसे बनते हैं, मकड़ी जाला क्यों बुनती है, बिजली घर कैसे काम करता है – ऐसे सैकड़ों सवाल उसके दिमाग में हर रोज़ घूमते रहते। उसके माता-पिता कभी-कभी उसकी जिज्ञासा से थक जाते, लेकिन उसे पढ़ाई में इतना रचता-बसता देखकर गर्व भी करते।
एक दिन उसके पिताजी घर पर एक स्मार्टफोन लेकर आए। अर्जुन की दुनिया ही बदल गई। इंटरनेट से जुड़कर उसे जैसे ज्ञान के पंख लग गए। वह गूगल पर हर सवाल खोजता, वीडियो देखता और नोट्स बनाता। धीरे-धीरे उसे विज्ञान और तकनीक से गहरी समझ होने लगी। यूट्यूब, ऑनलाइन साइंस प्रोजेक्ट्स और क्विज़ जैसी चीज़ें उसकी दिनचर्या बन गईं।
कुछ महीनों बाद स्कूल में एक विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। अर्जुन ने उसमें “प्लास्टिक की बोतल से बना एक कम लागत वाला एयर प्यूरीफायर” प्रस्तुत किया। यह विचार उसने इंटरनेट से सीखा था, पर उसमें स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके अपना स्वरूप दिया। उसकी प्रस्तुति ने सभी को प्रभावित कर दिया और उसे जिला स्तर पर पहला पुरस्कार मिला।
लेकिन ज्ञान के इस सफर में अर्जुन को यह भी समझ में आया कि इंटरनेट दोधारी तलवार की तरह है। एक बार उसने गलती से एक गलत वेबसाइट खोल ली, जिससे उसका फोन हैंग हो गया और वह घबरा गया। उसने यह बात अपने विज्ञान शिक्षक को बताई, जिन्होंने उसे समझाया – “इंटरनेट से जुड़ा ज्ञान शक्तिशाली होता है, लेकिन उसे सही दिशा में इस्तेमाल करना जरूरी है।”
इस घटना के बाद अर्जुन और ज्यादा सतर्क और जागरूक हो गया। अब वह न केवल खुद सीखता, बल्कि गांव के छोटे बच्चों को भी स्मार्टफोन और इंटरनेट का सही उपयोग सिखाने लगा। उसने “Tech Baatein with Arjun” नाम से एक यूट्यूब चैनल भी शुरू किया, जिसमें वह बच्चों को आसान भाषा में विज्ञान के प्रयोग और तकनीक की बातें समझाता है। अब गांव के बच्चे उसे प्यार से “गूगल चाचा” कहते हैं।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि यदि जिज्ञासा के साथ संयम और सही दिशा मिले, तो इंटरनेट और तकनीक किसी भी बच्चे को न केवल शिक्षित, बल्कि समाज के लिए उपयोगी बना सकती है। अर्जुन ने दिखा दिया कि ज्ञान को केवल खुद तक सीमित रखना नहीं, बल्कि दूसरों तक पहुँचाना भी उतना ही ज़रूरी है।
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